गुरुवार, अक्तूबर 12, 2006

दोहावली क्र॰ ५

देखो साधौ सारा जगत, भागत उसके पीछे।
जो नही भागत पीछे, वही तो साधौ होये।।

साधौ=साधु??? m i right

दोहावली क्र॰ ४

राह में काँटे हैं बिछे, लहु-लुहान पैर होये ।
फिर भी आगे जो बढे़, मलहम ज़रुर मिले।।

दोहावली क्र॰ १ संशोधन-१

चींटी से साथी मेरे, सीखो तुम इक बात।
(14) (11)
मंजिल पाने के लिये, करो अथक प्रयास।।
(13) (10)

प्र = 2 matra or 1 ??

दोहावली क्र॰ २ संशोधन-२

नारी अपमान कर के, बना पुरुष उत्तम ।
(13) (9)
निज पुत्र नज़र में, व्यर्थ उसका जनम।।
(9) (9)

दोहावली क्र॰ २ संशोधन-१

नारी का अपमान कर, बना पुरुष उत्तम ।
(13) (9)
स्वयं पुत्रों की नज़र में, व्यर्थ उसका जनम।।
(13) (9)

क्या मैंने जो मात्राओं की value लिखी है सही है??
कोइ इसे १३,११-१३,११ की पद्धति में लिखने में मदद कर साकता है तो thanks रहेगा

कंकर पत्थर जोरि के मस्जिद लयी बनाय (मात्रा kya hain??) पुरा दोहा
(12), (10)

बुधवार, अक्तूबर 11, 2006

दोहे का अर्थ

यहाँ विचरण करने वाले प्राणियों से मैं एक साहित्यिक प्रश्न पुछना चाहता हूँ:
दोहे का मतलब क्या होता है??
ऐसी दो पंक्तियाँ जो कुछ सीख दें अथवा (messagge convey) करें या कोई सी भी दो (rhyming) पंक्तियाँ!!!
जैसे कि दोहावली क्र॰ ३ में श्री बेंगाणी जी ने टिप्पणी करी है "यह तो दोहा बना नहीं"तो यह बात उन्होने किस संदर्भ में कही है??
क्या इसे (दोहावली क्र॰ ३ को) छंद कहा जा सकता है??
कविता और छंद तो शायद एक ही चीज़ है?? अथवा या फिर अलग??

शुक्रवार, अक्तूबर 06, 2006

दोहावली क्र॰ ३

ISI की क्या ज़रुरत है, जब घर में अरूंधती रहती है।
समाज सुधारक बन के, गद्दारों की भीड़ बोलती है।।

वैधानिक चेतावनी:
मैं जिन्हे दोहे और कविता कहता हूँ उन्हे दोहे और कविता कहना सेहत एवं साहित्य के लिए हानिकारक है

वैधानिक चेतावनी

मैं जिन्हे दोहे और कविता कहता हूँ उन्हे दोहे और कविता कहना सेहत एवं साहित्य के लिए हानिकारक है

दोहावली क्र॰ २

नारी का अपमान कर के, भले हीं मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाये।
लेकिन अपने ही पुत्रों की नज़रों में, वह मानव गिर जाये।।

दोहावली क्र॰ १

चींटी से मेरे साथी, सीखो इक छोटी सी बात।
मंजिल को पाने के लिये, करने होंगे अथक प्रयास।।

गुरुवार, अक्तूबर 05, 2006

मेरा हिंदी चिट्ठा - इसे ज़रूर पढ़ें

चुंकि मुझे हिंदी से उतना ही प्रेम है, जितना अधिकांश भारतियों को फिरंगीयों से; तो मैने सोचा क्यों नहीं कुछ ऐसा काम करा जाये जिसे करके कुछ आत्म संतुष्टि मिले, जिसे करके लगे कि मैं अपना जीवन व्यर्थ नहीं कर रहा। परिणाम स्वरूप मेरा हिंदी चिट्ठा आपके सम्मुख है। (मुझे पहले कभी यह एहसास नहीं हुआ था कि हिंदी लिखना इतना कठिन होगा.....उफफ।)
इन चिट्ठों के द्वारा में जनता को अपनी दिनचर्या के बारे में तो कतई नहीं बताने वाला; हाँ, लेकिन अगर कभी किसी विशेष प्रसंग/ वाक्ये पर लिखने के लिये मुझे पर्याप्त सामान (matter) मिल गया तो मैं शायद कुछ लिख दूँ।
अंत में मैं सिर्फ इतना ही कहना चाहता हूँ कि अगर गलती से आप इस स्थान पर पहुँच गये हैं तो
१) टिप्पणी ज़रूर लिखें
२) अगर आप मेरी त्रुतियाँ सुधार सकें तो मैं आपका तहे दिल से आभारी रहुँगा
३) जहाँ मैंने अंग्रेज़ी शब्दों का प्रयोग किया है, वहाँ उपयुक्त हिंदी शब्द सुझा दें
४) कृप्या अगर आप मेरे द्वारा लिखी गयीं चिट्ठों/ लेखों(!!) का विवेचनात्मक पुनरवलोकन कर सकें तो मैं 'फिर से' आपका तहे दिल से आभारी रहुँगा
५) आप हिंदी लिखने के लिये किस (software) का उपयोग करते हैं?? SCUni Pad उतना user-friendly नहीं है

यह पुरा चिट्ठा लिखने के लिये मैं कितनी बार शब्दकोष.कोम (shbdkosh.com) पर गया हूँ, यह मैं ही जानता हूँ!!!!!

मंगलवार, अक्तूबर 03, 2006

कविता क्रमांक २

रात के अन्धेरे में
शुरू करो कुछ बात
गुम हो जायें नशे में
एक - दुजे के हम आज

कविता क्रमांक १

किसी के साथ।
हाथों में हाथ॥
ऐसा लगे है जैसे।
दो जिस्म एक जान॥